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भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code, IPC)

भारतीय दण्ड संहिता

भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code, IPC) भारत के अन्दर (जम्मू एवं काश्मीर को छोडकर) भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा व दण्ड का प्रावधान करती है। किन्तु यह संहिता भारत की सेना पर लागू नहीं होती। जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर रणबीर दण्ड संहिता (RPC) लागू होती है।

भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश काल में सन् १८६२ में लागू हुई। इसके बाद इसमे समय-समय पर संशोधन होते रहे (विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद)। पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी भारतीय दण्ड संहिता को ही लागू किया। लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों (बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई आदि) में भी लागू की गयी थी।

दण्ड संहिता

अध्यायनामधाराएंअध्याय १उद्देशिकाधारा १ संहिता का नाम और उसके प्रर्वतन का विस्तारधारा २ भारत के भीतर किए गये अपराधों का दण्डधारा ३ भारत से परे किए गये किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दण्डधारा ४ राज्य-क्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तारधारा ५ कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जानाअध्याय २साधारण स्पष्टीकरणधारा ६ संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जानाधारा ७ एक बार स्पष्टीकृत पद का भावधारा ८ लिंग धारा ९ वचन धारा १० पुरूष, स्त्री धारा ११ व्यक्ति धारा १२ लोक धारा १३ निरसित धारा १४ सरकार का सेवक धारा १५ निरसित धारा १६ निरसित धारा १७ सरकार धारा १८ भारत धारा १९ न्यायाधीश धारा २० न्यायालय धारा २१ लोक सेवक धारा २२ जंगम सम्पत्ति धारा २३ सदोष अभिलाभ सदोष अभिलाभ सदोष हानि सदोष अभिलाभ प्राप्त करना/सदोष हानि उठानाधारा २४ बेईमानी से धारा २५ कपटपूर्वक धारा २६ विश्वास करने का कारणधारा २७ पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में सम्पत्तिधारा २८ कूटकरण धारा २९ दस्तावेज धारा २९ क इलेक्ट्रानिक अभिलेखधारा ३० मूल्यवान प्रतिभूति धारा ३१ विल धारा ३२ कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों के अन्तर्गत अवैध लोप आता हैधारा ३३ कार्य, लोप धारा ३४ सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किये गये कार्यधारा ३५ जब कि ऐसा कार्य इस कारण अपराधित है कि वह अपराध्कि ज्ञान याआशय से किया गया है धारा ३६ अंशत: कार्य द्वारा और अंशत: लोप द्वारा कारित परिणामधारा ३७ किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यों में से किसी एकको करके सहयोग करना धारा ३८ अपराधिक कार्य में संपृक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगेधारा ३९ स्वेच्छया धारा ४० अपराध धारा ४१ विशेष विधि धारा ४२ स्थानीय विधि धारा ४३ अवैध, करने के लिये वैध रूप से आबद्धधारा ४४ क्षति धारा ४५ जीवन धारा ४६ मृत्यु धारा ४७ जीव जन्तु धारा ४८ जलयान धारा ४९ वर्ष, मास धारा ५० धारा धारा ५१ शपथ धारा ५२ सद्भावनापूर्वक धारा ५२ क संश्रयअध्याय ३दण्डों के विषय मेंधारा ५३ दण्ड धारा ५३ क निर्वसन के प्रति निर्देश का अर्थ लगानाधारा ५४ लघु दण्डादेश का लघुकरणधारा ५५ आजीवन कारावास के दण्डादेश का लघुकरणधारा ५५ क समुचित सरकार की परिभाषाधारा ५६ निरसित धारा ५७ दण्डावधियों की भिन्ने धारा ५८ निरसित धारा ५९ निरसित धारा ६० दण्डादिष्ट कारावास के कतिपय मामलों में संपूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगाधारा ६१ निरसित धारा ६२ निरसित धारा ६३ जुर्माने की रकम धारा ६४ जुर्माना न देने पर कारावास का दण्डादेशधारा ६५ जबकि कारावास और जुर्माना दोनों आदिष्ट किये जा सकते हैं, तब जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय होधारा ६६ जुर्माना न देने पर किस भंति का कारावास दिया जायधारा ६७ जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय होधारा ६८ जुर्माना देने पर कारावास का पर्यवसान हो जानाधारा ६९ जुर्माने के आनुपातिक भाग के दे दिये जाने की दशा में कारावास का पर्यवसानधारा ७० जुर्माने का छ: वर्ष के भीतर या कारावास के दौरान में उदग्रहणीय होनाधारा ७१ कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिये दण्ड की अवधिधारा ७२ कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिये दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी हैधारा ७३ एकांत परिरोध धारा ७४ एकांत परिरोध की अवधिधारा ७५ पूर्व दोषसिदि्ध के पश्च्यात अध्याय १२ या अध्याय १७ के अधीन कतिपय अपराधें के लिये वर्धित दण्डअध्याय ४साधारण अपवादधारा ७६ विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप को विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्यधारा ७७ न्यायिकत: कार्य करने हेतु न्यायाधीश का कार्यधारा ७८ न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्यधारा ७९ विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्यधारा ८० विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटनाधारा ८१ कार्य जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिये किया गया हैधारा ८२ सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्यधारा ८३ सात वर्ष से उपर किन्तु बारह वर्ष से कम आयु अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्यधारा ८४ विकृतिचित्त व्यक्ति का कार्यधारा ८५ ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरूद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ हैधारा ८६ किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित हैधारा ८७ सम्मति से किया गया कार्य जिसमें मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय हो और न उसकी सम्भव्यता का ज्ञान होधारा ८८ किसी व्यक्ति के फायदे के लिये सम्मति से सदभवनापूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है धारा ८९ संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिये सदभवनापूर्वक किया गया कार्यधारा ९० सम्मतिउन्मत्त व्यक्ति की सम्मति शिशु की सम्मतिधारा ९१ एसे कार्यों का अपवर्णन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वत: अपराध हैधारा ९२ सम्मति के बिना किसी ब्यक्ति के फायदे के लिये सदभावना पूर्वक किया गया कार्यधारा ९३ सदभावनापूर्वक दी गयी संसूचनाधारा ९४ वह कार्य जिसको करने के लिये कोई ब्यक्ति धमकियों द्धारा विवश किया गया हैधारा ९५ तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्यनिजी प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय मेंधारा९६ निजी प्रतिरक्षा में दी गयी बातेंधारा९७ शरीर तथा सम्पत्ति पर निजी प्रतिरक्षा का अधिकारधारा९८ ऐसे ब्यक्ति का कार्य के विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतख्त्ति आदि होधारा९९ कार्य, जिनके विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है इस अधिकार के प्रयोग का विस्तारधारा१०० शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता हैधारा१०१ कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता हैधारा१०२ शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहनाधारा१०३ कब सम्पत्ति की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने तक का होता हैधारा१०४ ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता हैधारा१०५ सम्पत्ति की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहनाधारा१०६ घातक हमले के विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा के अधिकार जबकि निर्दोश व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम हैअध्याय ५दुष्प्रेरण के विषय मेंधारा१०७ किसी बात का दुष्प्रेरणधारा१०८ दुष्प्रेरक धारा१०८ क भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरणधारा१०९ दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरूप किया जाए और जहां तक कि उसके दण्ड के लिये कोई अभिव्यक्त उपबंध नही हैधारा११० दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता हैधारा१११ दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया हैधारा११२ दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिये और किये गये कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय हैधारा११३ दुष्प्रेरित कार्य से कारित उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक दवारा आशयित से भिन्न होधारा११४ अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थितिधारा११५ मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण यदि अपराध नही किया जाता यदि अपहानि करने वाला कार्य परिणामस्वरूप किया जाता हैधारा११६ कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण अदि अपराध न किया जाए यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है, जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना होधारा११७ लोक साधारण दवारा या दस से अधिक व्यक्तियों दवारा अपराध किये जाने का दुष्प्रेरणधारा११८ मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नहीं किया जाएधारा११९ किसी ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना का लोक सेवक दवारा छिपाया जाना, जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य हैयदि अपराध कर दिया जाय यदि अपराध मृत्यु, आदि से दण्डनीय हैयदि अपराध नही किया जायधारा१२० कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपानायदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नही किया जाएअध्याय ५ कआपराधिक षडयंत्रधारा१२० क आपराधिक षडयंत्र की परिभाषाधारा१२० ख आपराधिक षडयंत्र का दण्डअध्याय ६राज्य के विरूद्ध अपराधें के विषय मेंधारा१२१ भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करनाधारा१२१ क धारा १२१ दवारा दण्डनीय अपराधों को करने का षडयंत्रधारा१२२ भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करनाधारा१२३ युद्ध करने की परिकल्पना को सुनकर बनाने के आशय से छुपानाधारा १२४ किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोपित करने के आशय से राट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करनाधारा१२४ क राजद्रोह धारा१२५ भारत सरकार से मैत्री सम्बंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति के विरूद्ध युद्ध करनाधारा१२६ भारत सरकार के साथ शान्ति का संबंध रखने वाली शक्ति के राज्य क्षेत्र में लूटपाट करनाधारा१२७ धारा १२५ व १२६ में वर्णित युद्ध या लूटपाट दवारा ली गयी सम्पत्ति प्राप्त करनाधारा१२८ लोक सेवक का स्व ईच्छा राजकैदी या युद्धकैदी को निकल भागने देनाधारा१२९ उपेक्षा से लोक सेवक का ऐसे कैदी का निकल भागना सहन करनाधारा१३० ऐसे कैदी के निकल भागने में सहायता देना, उसे छुडाना या संश्रय देनाअध्याय ७सेना, नौसेना और वायुसेना से सम्बन्धित अपराधें के विषय मेंधारा१३१ विद्रोह का दुष्प्रेरण का किसी सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को कर्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करना

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